मैंने बहुत से लोगों को कहते सुना है कि आजकल एक रूपये में क्या आता है. पर बात सोचने वाली बात यह है कि आजकल एक रूपये के सिक्के मिल कहाँ रहा है. कुछ समय से बाज़ार में एक रूपये के सिक्कों की कमी नजर आ रही है. इसका कारण सिक्कों की होती कालाबाजारी है जिसके पीछे एक संगठित समूह (गिरोह) काम कर रहा है. इस समूह के सक्रिय सदस्य एजेंट के रूप में जगह जगह फैले रहते है जो स्थानीय दूकानदारों तथा लोगों को कमीशन का लालच (जो १०० रूपयों के बदले १३० से १५० रूपये होता है) देकर सिक्के इकठ्ठे करवाते हैं. और इन सिक्कों को किसी ब्लेड बनाने वाली फैक्ट्री को सप्लाई कर देते हैं. जहाँ इन्हें गलाकर प्राप्त धातु से ब्लेड बनाये जाते हैं. सामान्यतया १ रूपये से प्राप्त धातु से ६ ब्लेड बन जाते हैं . इस हिसाब से १०० रूपयों के सिक्कों से ६०० ब्लेड बन जाते है. १ ब्लेड की कीमत बाज़ार में एक रूपया होती है. इस तरह देखा जाय तो ये कितना मोटा मुनाफ़ा कमां रहे हैं और रिज़र्व बैंक को चूना लगा रहे हैं. सरकार ने पूर्व प्रचलित पीतल और तांबे के सिक्कों को इसलिये बंद किया था क्योंकि उन सिक्कों कि कालाबाजारी हो रहि थी. अब इन नये सिक्कों के साथ भी वही हो रहा है. जिस तेजी से टेक्नोलाँजी का विकास हो रह है उसी तेजी से अपराध के तरीकों में भी विकास हो रहा है. अब तक ना जाने कितने सिक्कों का अस्तित्व समाप्त किया जा चुका होगा. इस नुकसान से सरकार के साथ साथ जनता को भी दो चार होना पड़ता है क्योंकि सिक्कों के अभाव में या तो सिक्का छोड़ना पड़ता है या ऐसा सामान लेना पड़ता है जिसकी उन्हें आवश्यकता नहीं है ( जैसे समान के साथ टाँफ़ी पकडा़ देना क्यूंकि एक रूपया नहीं है). इस समस्या से मुझे तो दो चार होना ही पड़ता है क्या आप भी इससे प्रभावित हैं?? अपनी टिप्प्णीयों का स्वागत है. नीलकंठ
Saturday, July 14, 2007
बात एक रूपये की
Sunday, July 8, 2007
ताज़ और हम
आज हम भारतीयों की मेहनत रंग लायी और हमने ताज को फिर से सात अजुबों में इसको जगह दिलायी. न केवल सात अजुबों में सामिल किया बल्कि पहला स्थान दिलाया. वैसे ये हम भरतीयों की आदत है जो हम ठान लेते हैं वो पूरा करके ही दम लेते हैं और आज भी हमने यही करके दिखाया. किसी भारतीय द्वारा ताज़ को सात अज़ुबों में सामिल होने की उदघोषणा करते हुए अच्छा लगा. सुबह-सुबह जब हमने अपना टेलीवीजन ऑन किया तो देखा कि ताज़महल सात अज़ूबों में सामिल हो गया है, देखकर अच्छा लगा. कुछ समय तक देखते रहे तो पता चला कि ताज़महल ने दौड़ में पहला स्थान पाया है.
हमने ताज़महल को सात अज़ूबों का सरताज़ तो बना दिया है पर अब हमारा और हमारे रहनुमाओं का कर्तव्य है कि इस धरोहर को (जिसे ये मुकाम दिलाने में करोड़ों भरतीयों का योगदान है) धरा में जीवित रखने के लिए धन और संसाधनों का उचित प्रबन्ध करें जिससे भारतीय पर्यटन में गति आये और हम शान से कहें वाह ताज़
अपने सुझावों और आलोचनाओं से अवगत करयें......
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